रब की लिखी जोगी - 1 Damini द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अपराध ही अपराध - भाग 24

    अध्याय 24   धना के ‘अपार्टमेंट’ के अंदर ड्र...

  • स्वयंवधू - 31

    विनाशकारी जन्मदिन भाग 4दाहिने हाथ ज़ंजीर ने वो काली तरल महाश...

  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

श्रेणी
शेयर करे

रब की लिखी जोगी - 1

पार्ट 1

यह कहानी है खुद को रब दी बेटी मानने वाली समरीत की जो दिखने में कुवारी सलोनी और दिल से दरियादिल है। प्यार से भरी समरीत खुद अपने असली प्यार से दूर है?? कौन है उसका असली प्यार?? कोई लड़का या अपना परिवार??

दृश्य 1:-
वाहेगुरु सतनाम वाहे गुरु का भजन गाने के बाद गुरुद्वारे में भंडारा बांटा जा रहा है। एक सुंदर और नेकदिल लड़की और कुछ नेक लोग बाबाजी की सेवा में लगे हुए भीड़ में लाइन लगाए खड़े लोगो को कड़ा ( मीठा प्रसाद ) बांट रहे है। लोग बड़ी खुशी से प्रसाद ले रहे है। कई लोग आ रहे है और कई जा रहे है और इन्हीं सब की भीड़ में एक बूढी औरत थकान से गिर जाती है।
समरीत उनकी मदद को आती है।

समरीत उन्हें उठाते हुए:- क्या हुआ आंटी जी। आप ठीक तो है। ये लीजिए पानी पीजिए।

बूढी औरत पानी पीकर:- बाबाजी जी दे घर में किसी को क्या हो सकता है। वो तो कुड़ी ( लड़की) में थोड़ा चक्कर खाकर गिर गई थी। पर तूने मुझे बंचा लिया। रब मेहर करे तुझ पर यही अरदास करती हूं।

समरीत खुशी से:- आपका शुक्रिया आंटी जी। आप रब की दहलीज पर अाई हो तो अपनी सारी चिंता और फिक्र उन पर छोड़ दो और ये प्रसाद ले जाओ आंटी जी।

बूढी औरत प्यार से:- तेरा शुक्रिया बेटी।

समरीत:- शुक्रिया कैसा? बाबाजी की सेवा तो सबसे बड़ा मेवा है। और आप सब की वजह से ही तो हम बाबाजी को याद करते है। उनकी सीख को भूलते नहीं है। शुक्रिया तो आपका भी होना चाहिए। क्योंकि आपकी अरदासो से ही वाहेगुरु को लोग इतना मानते है।

बूढी औरत:- काश कि मेरी बेटी भी तेरे जैसे होती? तेरी बड़ी बड़ी बाते सुनकर तो तेरे माँ बाप भी बहुत गर्व करते होंगे।

बूढी औरत की बात सुनकर ना जाने क्यों समरीत के चेहरे पर उदासी छा गई। उसकी मां कौन थी वो ये खुद नहीं जानती थी। बचपन से लेकर आज तक गुरुद्वारा ही उसका घर था।उसने ये भी सुना था कि उसकी माँ ने बचपन में उसे यही छोड़ दिया था। कोई नहीं जानता था उसकी माँ कहाँ से आई थी। और उसने अपनी जन्मी बच्ची को अकेला दर दर की ठोकरें खाने के लिए क्यों छोड़ दिया। ये एक रहस्य था जिससे पर्दा उठना बाकी था।पर समरीत के मन में नफरत के अलावा कई सवाल थे जो उसे पूछने थे।बूढी औरत तो चली गई पर वो सवाल अभी तक नहीं गया कि समरीत आखिर है कौन????🤔

पार्ट 2

कहानी अब तक:-
समरीत खुद की पहचान से ही अनजान है और बूढी औरत की बातो को सुनकर उसके मन में कई तरह के सवाल आते है? जैसे मै कौन हूं? और मुझ पर गर्व करने वाले माँ बाप कौन है??
अब कहानी:-
समरीत के मन में यही उधेड़बुन है कि उसकी पहचान क्या है? उसकी तरह ही किसी और के मन में भी यहीं कसक है जो उसे दिन पर दिन काटती जा रही है। एक सीपी होकर भी उसने घर के चमकते कल के लिए एक अनमोल मोती
गवा दिया।

दृश्य:-१
एक बड़ी सी कोठी कोठी का दरवाज़ा और दरवाज़े के अंदर एक घर और घर के अंदर चहचहाते चेहरे और इन सब के बीच उस घर के बड़े सदस्य के रूप में इंदर अनेजा जो बड़े गर्व से कहते है:- मेरी सोट्टी मेरी जान। इज्जत करो जो घर आए मेहमान।।
68 साल के हो गए है घर के दादाजी पर घर के मालिक की तरह ही उनकी ठाठ बाट है। घर में एक पत्ता भी उनकी इजाज़त के बिना नहीं हिलता। यहां तक कि बेटा सुखबीर भी और उनकी बहू आरती भी उनके बनाए रास्ते पर ही चलते है।

आज का दिन फैसले का दिन है।बजाज और अनेजा परिवार में ज़मीन का जो मामला है उस पर कोर्ट आज फैसला देने वाला है। लगभग इंदर अनेजा का जीतना तय है। पर इंदर के मन में एक बैचेनी भी है। इतने में उनकी बहू चाय नाश्ता की ट्रे लाती है। इंदर अपने ही ख़यालो में खोया होता है उसका ध्यान आरती पर जाता ही नहीं।

आरती मुस्कुराते हुए :- बाउजी आप चिंता ना लो। सब वाहेगुरु पर छोड़ दो। आपकी जमीन आप को ही मिलेगी।
ये लीजिए चाय पी लीजिए। अपने सवेरे से कुछ खाया नहीं है ना। मै टेबल लगा देती हूं आप सब भी
breakfast करके ही जाना। 2 मिनट ही लगेंगे।

सिकंदर:- जी पाभी जी। आपकी चाय का स्वाद तो कमाल होता है। बिना पिए जाएंगे किथे??

(सिकंदर सुखबीर का छोटा भाई है एकदम मस्तमौला और खुशमिजाज है। तीस साल का सिकंदर बहुत ही कम उम्र में बड़े बड़े दुख सह चुका है। बीवी के लिए घर से अलग हुआ और उसी बीवी की एक्सिडेंट में मौत हो गई। उस सदमे से उबरा ही था कि अगले साल सारा बिज़नेस भी चौपट हो गया। तभी से वापिस घर में वो रहने लगा पर अपना घर बसाने के बारे में सोचता ही नहीं है। अपनी हसी के नीचे दुख छिपाता है।)

बाऊजी चाय की चुस्की लेते हुए:- वाह पुतर चाय तो वदिया बनाई है तूने। जी खुश हो गया। देखना उस बजाज के झूठे
दावे को धूल चटा देनी है मैंने। चल अब चलता हूं देरी नहीं होनी चाहिए।

( इंदर के जाते ही आरती के चेहरे पर उदासी छा गई क्योंंकि वो भी जानती थी कि बजाज के दावे झूठे नहीं है पर चाह कर भी सच बयां नहीं कर सकती थी। परिवार की इज्ज़त के आगे उसने खुद की औलाद को ऐसी सजा दी कि वाहेगुरु भी उसे बख्श नहीं सकता पर ये उसकी मज़बूरी थी इसलिए कोई उसे दोषी भी नहीं कह सकता। वो बस फसी ही फसी हैं। उसके लिए तो आगे कुआं पीछे खाई है। फिर भी माता रानी की मूर्ति के सामने जाकर वो सबके भले की कामना कर रही है।)


आगे जारी क्रमशः।